यहां पर लगभग हर घर में खांसी-बुखार के मरीज मौजूद हैं। लेकिन इससे भी बुरा यह है कि गांव वालों को यह नहीं पता कि कोरोना क्या है और कितना खतरनाक है? यहां के सीधे-सादे लोग तो बीमार होने पर यह कहते हैं कि उन्हें काली चढ़ी है या फिर माता है और देवरे पामणे (नाराज होकर शरीर में मेहमान) हो गए हैं। इलाज के लिए डॉक्टरों के पास नहीं, बल्कि भोपा और झाड़-फूंक वालों के पास चले जाते हैं। उदयपुर जिले में वल्लभनगर उपखंड के गांवों में कोरोना पूरी तरह पैर पसार चुका है। हर गांव में तीन चौथाई आबादी में खांसी-बुखार के मरीज हैं। अगर कोरोना के 100 सैम्पल करवाए जाएं तो इनमें से 80 पॉजिटिव मिल जाएंगे, लेकिन हेल्थ डिपार्टमेंट और प्रशासन के रिकॉर्ड में सच से बिल्कुल उलट तस्वीर है क्योंकि सैम्पल लेने का काम केवल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक ही सिमट कर रह गया है।