2019 में जल जीवन मिशन के आरंभ होने के बाद से 5.5 करोड़ से अधिक घरों को नल जल आपूर्ति उपलब्ध कराई गई
देश के 83 जिलों ने ‘100 प्रतिशत नल जल आपूर्ति वाले घरों’ की स्थिति हासिल की है
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत ग्रामीण भारत में 10.86 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 के अनुसार उन्नत स्वच्छता सुविधा का उपयोग करने वाले घरों की आबादी 2015-16 के 48.5 प्रतिशत से बढ़कर 2019-21 में 70.2 प्रतिशत हो गई
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश करते हुए कहा कि अगस्त, 2019 में जल जीवन मिशन (जेजेएम) के आरंभ होने के बाद से 5.5 करोड़ से अधिक घरों को नल जल आपूर्ति उपलब्ध कराई गई है ।
वित्त मंत्री ने कहा कि जल जीवन मिशन (जेजेएम) ने 2024 तक ग्रामीण भारत में घरों को व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से पर्याप्त सुरक्षित पेय जल उपलब्ध कराने की कल्पना की है और इससे 19 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों या 90 करोड़ से अधिक ग्रामीण आबादी को लाभ पहुंचेगा ।
विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हुए, समीक्षा में कहा गया है कि 2019 में ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 18.93 करोड़ परिवारों में से लगभग 3.23 करोड़ (17 प्रतिशत) ग्रामीण परिवारों के पास उनके घरों में नल जल कनेक्शन थे ।
दिनांक 02 जनवरी, 2022 तक 5,51,93,885 घरों को मिशन की शुरुआत के बाद से नल जल आपूर्ति प्रदान की गई ।
छह राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों, अर्थात गोवा, तेलंगाना, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, पुद्दुचेरी, दादरा नगर हवेली और दमन दीव तथा हरियाणा ने नल जल आपूर्ति के साथ 100 प्रतिशत घरों की प्रतिष्ठित स्थिति हासिल की है ।
इसी तरह, 83 जिलों, 1016 ब्लॉकों, 62,749 पंचायतों और 1,28,893 गांवों ने 100 प्रतिशत घरों में नल जल आपूर्ति की स्थिति हासिल कर ली है ।
19.01.2022 तक जल जीवन मिशन के तहत 8,39,443 स्कूलों को जल आपूर्ति उपलब्ध कराई जा चुकी है ।
जेजेएम के तहत स्कूलों, आंगनवाड़ी केन्द्रों, जीपी भवनों, स्वास्थ्य केन्द्रों, कल्याण केन्द्रों और सामुदायिक भवनों को कार्यात्मक नल कनेक्शन प्रदान करने के लिए गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों, सूखाग्रस्त एवं रेगिस्तानी क्षेत्रों के गांवों, सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) गांवों के लिए प्राथमिकता है ।
मिशन के लिए कुल परिव्यय 3.60 लाख करोड़ रुपये है ।
जेजेएम पारदर्शिता एवं जवाबदेही के लिए प्रौद्योगिकीय युक्तियों का उपयोग करेगा जिनमें (i) प्राकृतिक एवं वित्तीय प्रगति अधिकृत करने के लिए आइएमआईएस; (ii) ‘डैशबोर्ड’; (iii) ‘मोबाइल ऐप’; (iv) वास्तविक समय आधारित गांवों में मात्रा, गुणवत्ता एवं नियमितता के लिए जलापूर्ति की माप तथा निगरानी के लिए सेंसर आधारित आईओटी समाधान; (v) प्रत्येक सृजित परिसंपत्ति की जियो-टैंगिंग; (vi) नल कनेक्शन को ‘आधार संख्या’ से जोड़ना; (vii) सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली (पीएफएमएस) के माध्यम से लेनदेन शामिल हैं ।
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) (एसबीएम-जी)
दिनांक 2 अक्टूबर 2014 को एसबीएम-जी की स्थापना के बाद से ग्रामीण स्वच्छता ने अत्यधिक प्रगति की है ।
इसकी स्थापना के बाद से दिनांक 28.12.2021 तक, ग्रामीण भारत में 10.86 करोड़ से अधिक शौचालय बनाए गए ।
एसबीएम (जी) के दूसरे चरण के तहत, खुले में शौच-मुक्त (ओडीएफ)-प्लस वर्ष 2020-21 से वर्ष 2024-25 तक सभी गांवों को खुले में शौच-मुक्त (ओडीएफ) बनाने के लक्ष्य के साथ कार्यान्वित किया जा रहा है ।
वर्ष 2021-22 के दौरान (25.10.2021 तक) नए घरों के लिए कुल 7.16 लाख व्यक्तिगत घरेलू शौचालय तथा 19,061 सामुदायिक स्वच्छता परिसरों का निर्माण किया गया ।
साथ ही 2,194 गांवों को ओडीएफ प्लस घोषित किया गया है ।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (एनएफएचएस-5) के पांचवें दौर के हाल ही में जारी निष्कर्षों के अनुसार, बेहतर स्वच्छता सुविधा का उपयोग करने वाले घरों में रहने वाली आबादी वर्ष 2015-16 में 48.5 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2019-21 में 70.2 प्रतिशत हो गई ।
आर्थिक सर्वेक्षण में कोविड-19 महामारी से निपटने के लिए भारत द्वारा अपनाए तीव्र और बहुआयामी दृष्टिकोण को रेखांकित किया गया
आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार कोविड टीका लोगों की जान बचाने और उनकी आजीविका को बरकरार रखने के लिए सर्वश्रेष्ठ कवच के रूप में उभरा
टीकाकरण को मैक्रो-इकोनॉमिक इंडीकेटर के तौर पर देखा जाना चाहिए
स्वास्थ्य पर व्यय 2019-20 (कोविड-19 पूर्व अवधि) के 2.73 लाख करोड़ रुपये से करीब 73 प्रतिशत बढ़कर 2021-22 में 4.72 लाख करोड़ रुपये हो गया
केन्द्र और राज्य सरकारों का स्वास्थ्य क्षेत्र पर बजटीय व्यय 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद का 2.1 प्रतिशत हो गया, जोकि 2019-20 में 1.3 प्रतिशत था
एनएफएचएस-5 के अनुसार स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक क्षेत्रों में शुरू किए गए सरकारी कार्यक्रमों के काफी उत्साहवर्धक परिणाम सामने आए
केन्द्रीय वित्त एवं कॉरपोरेट कार्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने सोमवार को संसद में आर्थिक समीक्षा 2021-22 पेश करते हुए कहा कि पिछले दो सालों में भारत ने शेष विश्व के साथ ही महामारी की भयावहता का सामना किया ।
इस दौरान केन्द्र सरकार का मुख्य फोकस समाज के निम्न तबकों को सुरक्षा कवच प्रदान करना और महामारी के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल परिणामों से निपटने के लिए प्रतिक्रिया तैयार करने पर रहा ।
आर्थिक समीक्षा में रणनीति के ‘त्वरित दृष्टिकोण’ को रेखांकित करते हुए कहा गया कि एक अनिश्चित माहौल में इस दृष्टिकोण के काफी अच्छे परिणाम सामने आए हैं ।
इस दृष्टिकोण के लचीलेपन से प्रतिक्रिया में सुधार हुआ है, लेकिन इसके बावजूद इससे भविष्य के परिणामों के बारे में अनुमान नहीं लगाया जा सकता ।
केन्द्र सरकार के इस वैश्विक कोविड-19 महामारी के प्रति नजरिए में समग्रता, रणनीति और सुसंगत प्रतिक्रिया दिखाई पड़ती है ।
कोविड-19 के लिए भारत की स्वास्थ्य प्रतिक्रिया
भारत ने, जोकि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी और एक बड़ी वृद्ध जनसंख्या वाला देश है, कोविड-19 से निपटने और उसके प्रबंधन के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया ।
इसके तहत –
प्रतिबंध/आंशिक लॉकडाउन
स्वास्थ्य की आधारभूत संरचना में क्षमता निर्माण
कोविड-19 उपयुक्त व्यवहार, परीक्षण, अनुरेखन, उपचार और
टीकाकरण अभियान चलाने जैसे कदम शामिल हैं ।
कंटेनमेंट तथा बफर जोन के संदर्भ में संचरण की श्रृंखला तोड़ने के लिए उपाय किए गए, जिनमें परिधि नियंत्रण, सम्पर्क अनुरेखन, संदिग्ध मामले और उच्च जोखिम वाले सम्पर्कों का अलगाव और परीक्षण तथा पृथकवास सुविधाओं का निर्माण शामिल हैं ।
वास्तविक समय आंकड़ों तथा साक्ष्य के आधार पर देखी गई निरंतर बदलती स्थिति के अनुरूप निवारण रणनीति बदल गई ।
देश में परीक्षण क्षमता में त्वरित वृद्धि हुई ।
सभी सरकारी केन्द्रों में कोविड-19 की नि:शुल्क जांच की गई ।
तीव्र जांच के लिए रैपिड एंटीजन टेस्ट किट की शुरूआत हुई ।
मिशन मोड में एन-95 मास्क, वेंटीलेटर, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण किट और सैनिटाइजर की निर्माण क्षमता को बढ़ाया गया ।
आइसोलेशन बेड, डेडीकेटिड इंटेंसिव केयर यूनिट बेड और मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए व्यापक अवसंरचना तैयार की गई ।
दूसरी कोविड लहर के दौरान मेडिकल ऑक्सीजन की त्वरित मांग को पूरा करने के लिए सरकार ने कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में रेलवे, वायु सेना, नौसेना तथा उद्योगों को भी शामिल किया ।
इस लड़ाई में कोविड टीके, जीवन बचाने तथा आजीविका को बरकरार रखने के मामले में सबसे अच्छे कवच बनकर उभरे ।
कोविड टीकाकरण रणनीति :
आर्थिक सर्वेक्षण में इस बात को रेखांकित किया गया है कि टीके सिर्फ स्वास्थ्य प्रतिक्रिया ही नहीं बल्कि अर्थव्यवस्था खासतौर से सम्पर्क आधारित सेवाओं को दोबारा खोलने के मामले में भी महत्वपूर्ण साबित हुए ।
अत: अब इन्हें मैक्रो इकोनॉमिक इंडीकेटर के तौर पर भी देखा जाना चाहिए ।
‘उदारीकृत मूल्य निर्धारण तथा त्वरित राष्ट्रीय कोविड-19 टीकाकरण रणनीति’ 01 मई, 2021 से 20 जून, 2021 तक लागू की गई ।
03 जनवरी, 2022 से कोविड-19 टीका कवरेज को 15 से 18 वर्ष के आयु वर्ग तक विस्तारित किया गया ।
इसके अलावा 10 जनवरी, 2022 से सभी स्वास्थ्यकर्मियों, अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं तथ सह-रूग्णता वाले 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों को उनकी दूसरी खुराक लेने की तिथि से 9 महीने या 39 सप्ताह पूरे होने के बाद कोविड-19 टीके की बूस्टर (ऐहतियाती) खुराक प्राप्त करने के पात्र बनाया गया ।
आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया कि भारत का राष्ट्रीय कोविड टीकाकरण कार्यक्रम विश्व के सबसे बड़े टीकाकरण कार्यक्रमों में से एक रहा है ।
इसके तहत न सिर्फ घरेलू स्तर पर कोविड टीके का उत्पादन किया गया, बल्कि इसने अपनी जनसंख्या को, जोकि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या है, को नि:शुल्क टीका सुनिश्चित किया ।
केन्द्रीय बजट 2021-22 में राष्ट्रव्यापी कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम के तहत टीका प्राप्त करने के लिए 35 हजार करोड़ रुपये आबंटित किए गए थे ।
16 जनवरी, 2021 से लेकर 16 जनवरी, 2022 तक कोविड-19 टीके की 156.76 करोड़ खुराकें दी जा चुकी हैं ।
इनमें 90.75 करोड़ पहली खुराक के तौर पर और 65.58 करोड़ खुराकें दूसरी खुराक के तौर पर दी गई ।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि इतने बड़े पैमाने और गति से किए गए टीकाकरण के चलते लोगों को उनकी आजीविका सुनिश्चित की जा सकी है ।
सर्वेक्षण में इस बात को रेखांकित किया गया है कि भारत विश्व के उन कुछ देशों में शामिल हैं, जो कोविड टीके का उत्पादन कर रहे हैं ।
देश ने दो भारत निर्मित कोविड टीकों से शुरूआत की ।
देश की ‘आत्मनिर्भर भारत’ परिकल्पना के तहत पहला घरेलू कोविड-19 टीका होल विरियन इनएक्टिवेटिड कोरोना वायरस वैक्सीन (कोवैक्सीन) भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड द्वारा भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के नेशनल इंस्टीट्यूट वायरोलॉजी के सहयोग से विकसित एवं निर्मित किया गया ।
आईसीएमआर ने ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका के सहयोग से विकसित कोविशील्ड टीके के क्लिनिकल परीक्षणों को वित्त पोषित किया ।
कोविशील्ड तथा कोवैक्सीन भारत में व्यापक रूप से उपयोग किये जाने वाले टीके हैं ।
प्रत्येक माह कोविशील्ड की लगभग 250-275 मिलियन तथा कोवैक्सीन की 50-60 मिलियन खुराकों का उत्पादन किया जा रहा हैं ।
टीकाकरण कार्यक्रम को प्रौद्योगिकी संचालित बनाने के लिए आरोग्य सेतु मोबाइल ऐप शुरू किया गया, ताकि लोग खुद को होने वाले कोविड-19 संक्रमण के जोखिम का आकलन कर सकें ।
इसके साथ ही कोविन 2.0 (ई-विन के साथ) एक विशिष्ट डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया गया, जो वास्तविक समय के अनुरूप टीकाकरण कार्यकलाप-टीका पंजीकरण, प्रत्येक लाभार्थी की कोविड-19 टीका स्थिति पर नजर रखना, टीके का स्टॉक, भंडारण, वास्तविक टीकाकरण प्रक्रिया तथा डिजिटल प्रमाण-पत्रों का सृजन आदि कार्यो में सहयोग करता है ।
स्वास्थ्य क्षेत्र पर व्यय :
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि हालांकि महामारी ने लगभग सभी सामाजिक सेवाओं पर प्रभाव डाला है, लेकिन इसमें स्वास्थ्य क्षेत्र सर्वाधिक प्रभावित रहा ।
2019-20 (कोविड-19 पूर्व) में जहां स्वास्थ्य क्षेत्र पर 2.73 लाख करोड़ रुपये व्यय किए गए थे, वहीं 2021-22 में इस पर 4.72 लाख करोड़ रुपया व्यय किया गया, जोकि करीब 73 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है ।
सर्वेक्षण में आगे कहा गया कि 2021-22 के केन्द्रीय बजट में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अतिरिक्त आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन के नाम से एक केन्द्र प्रायोजित योजना की घोषणा की गई है, जिसके तहत 64,180 करोड़ रुपये की लागत से अगले पांच साल में प्राथमिक, सैकेंडरी और क्षेत्रीय स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था का क्षमता निर्माण किया जाएगा, मौजूदा राष्ट्रीय संस्थानों को मजबूत बनाया जाएगा और सामने आने वाली नई-नई बीमारियों की पहचान और उनके लिए दवा विकसित करने के उद्देश्य से नए संस्थान स्थापित किए जाएंगे ।
इसके अलावा केन्द्रीय बजट 2021-22 में कोविड-19 टीकाकरण के लिए 35 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है ।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना 2017 का लक्ष्य सरकार का स्वास्थ्य व्यय 2025 तक बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत करना है ।
इसके अनुसार, इस लक्ष्य को ध्यान में रखकर केन्द्र और राज्य सरकारों का स्वास्थ्य क्षेत्र पर परिव्यय 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद के 1.3 प्रतिशत से बढ़कर 2021-22 में 2.1 प्रतिशत हो गया है ।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5)
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) के अनुसार कुल जन्म दर (टीएफआर), लिंगानुपात और शिशु मृत्यु दर, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर और सांस्थानिक जन्म दर जैसे स्वास्थ्य निष्कर्ष संकेतकों में 2015- 16 की तुलना में पर्याप्त सुधार आया है ।
सर्वेक्षण के अनुसार एनएफएचएस-5 दर्शाता है कि सिर्फ सेवाएं ही जनता तक नहीं पहुंच रही हैं, बल्कि उनके निष्कर्षों में भी सुधार आया है ।
सकल बाल पोषण संकेतकों में भी देशभर में काफी सुधार आया है ।
पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों की मृत्यु दर (यू5एमआर) 2015-16 के 49.7 के मुकाबले घटकर 2019-21 में 41.9 रह गई है ।
आईएमआर भी 2015-16 के प्रति हजार जन्म पर 40.7 के मुकाबले 2019-21 में घटकर प्रति हजार जन्म पर 35.2 पर आ गया है ।
स्टंटिंग (आयु के अनुसार कमतर) में भी गिरावट आई है और यह 2015-16 के 38 प्रतिशत के मुकाबले 2019-21 में 36 प्रतिशत पर आ गई है ।
वेस्टिंग (आयु के अनुसार कम वजन) में भी पर्याप्त कमी आई है और यह 2015-16 के 21 प्रतिशत से घटकर 2019-21 में 19 प्रतिशत हो गई है ।
इसके साथ ही कम वजन के साथ पैदा होने वाले बच्चों की दर 2015-16 के 36 प्रतिशत के मुकाबले 2019-21 में 32 प्रतिशत पर आ गई है ।
एनएफएचएस-5 के ताजा आंकड़े बताते हैं कि प्रति महिला शिशु जन्म औसत में भी गिरावट आई है ।
यह 2015-16 के 2.2 के मुकाबले घटकर 2019-21 में 2.0 हो गई है ।
सर्वेक्षण में इस बात को रेखांकित किया गया है कि देशभर में प्रति महिला शिशु जन्म स्तर (2.1 शिशु प्रति महिला) इससे भी नीचे आ गया है ।
देश में लिंगानुपात : प्रति एक हजार पुरुषों पर महिलाओं का प्रतिशत बढ़ा है ।
2015-16 (एनएफएचएस-4) में जहां यह 991 था, वहीं 2019-20 (एनएफएचएस-5) में बढ़कर 1020 हो गया ।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लिंगानुपात और प्रति एक हजार बालकों पर बालिकाओं की जन्म दर में भी पिछले पांच साल में वृद्धि हुई है और यह 2015-16 के 919 से बढ़कर 2019-21 में 929 हो गई हैं ।