Lecture 21 Water Quality Standards And Philosophy of Water Treatment-OlGllOZlIyI 57.4 KB
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व्याख्यान में आपका फिर से स्वागत है।
 पिछले क्लास (class) में, हम बात कर रहे थे पानी के विभिन्न स्रोतों के बारे में, पानी की आपूर्ति प्रणाली की विशेषताओं के बारे मे और हम पानी की मांग की गणना कैसे कर सकते हैं, आदि ।
 आज हम पानी की गुणवत्ता के मापदंडों के बारे में थोड़ा विस्तार से बात करेंगे।
 जब हम पानी की आपूर्ति के बारे में बात करते हैं, तो हमें पानी की गुणवत्ता के बारे में सावधान रहना होगा।
 इसलिए, जब हम पानी की गुणवत्ता के बारे में बात करते हैं, तो हम उन्हें तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं; भौतिक पैरामीटर (physical parameter), रासायनिक पैरामीटर (chemical parameter) और जैविक पैरामीटर (biological parameter)।
 यह स्लाइड आपको दिखाती है कि भौतिक, रासायनिक और जैविक श्रेणियों के अंतर्गत आने वाले सभी पैरामीटर क्या हैं।
 भौतिक का अर्थ है, जिसे हम देख सकते हैं, या अनुभव कर सकते हैं, जिनमें रंग, गंध, स्वाद, तापमान, टर्बीडीटी (turbidity), आदि शामिल हैं।
 हम तुरंत उन्हें महसूस कर सकते हैं, इसीलिए उन्हें भौतिक मापदंडों (parameter) के रूप में जाना जाता है।
 दूसरा रासायनिक पैरामीटर (parameter) हैं, कुछ रासायनिक घटकों की उपस्थिति के कारण, ये गुण आ जाते हैं।
 जैसे पीएच (pH) और कनडक्टिविटी(conductivity), डिजॉल्वड सोलीड्स (dissolved solids), कोलाइडल सोलीड्स (colloidal solids), सस्पेंडेड सोलीड्स (suspended solids), अल्कालिनीटी (alkalinity), एसिडिटि (acidity), हार्डनेस्स (hardness), टॉक्सिक केमिकल्स (toxic) , हैवि मेटल्स (heavy metal)।
 ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) भी रासायनिक पारामीटर (parameter) मे ही सम्मालित है; ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) को हम विभिन्न तरीकों से व्यक्त कर सकते हैं, जैसे बाओलोजीकल ऑक्सिजन डिमांड {Biological oxygen demand (BOD)}, और केमिकल ऑक्सिजन डिमांड {chemical oxygen demand (COD)} ।
कभी-कभी हम पूर्ण टोटल ओर्गानिक कार्बन (total organic carbon) के संदर्भ में भी मापते हैं।
 रासायनिक पैरामीटर (parameter) मे पोषक तत्व भी होते हैं।
 इनके अलावा कई अन्य जटिल ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) भी हैं जिनमें, डीबीपी (DBP), पॉली ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (polyaromatic hydrocarbons), एवं कीटनाशक शामिल हैं।
 आजकल लोग नए पदार्थों के बारे में भी चर्चा कर रहे हैं जैसे कि पानी में मौजूद फर्मास्यूटिकल (pharmaceutical), व्यक्तिगत केयर (care) उत्पाद आदि।
 वे सभी पैरामीटर(parameter) रासायनिक श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।
 तीसरा पैरामीटर (parameter) जैविक है, अर्थात ये पैरामीटर (parameter) जैविक मूल के हैं; उनमें बैक्टीरिया (bacteria), वायरस (virus), प्रोटोजोआ (protozoa), हेल्मिन्थ (helminths) शामिल हैं।
 इसलिए, जब हम पानी की गुणवत्ता के बारे में बात करते हैं, तो हमें इसका विशेष ध्यान एवं अनुमान रखना होगा कि पानी में मौजूद इस पैरामीटर की मात्रा क्या है और क्या यह मात्रा अनुमेय सीमा (permissible limit) के भीतर हैं।
 तो, सबसे पहले, हम जल्दी से भौतिक मापदंडों को देखेंगे।
 पहला है रंग है।
रंग पानी में डिजॉल्वड सोलीड्स (dissolved solids) और कोलाइडल सोलीड्स (colloidal solids) की उपस्थिति है।
 और इसे असली रंग (true color) और स्पष्ट रंग (apparent color) में विभाजित किया गया है, और यदि आप रंग का पता लगाना चाहते हैं या मापना चाहते हैं तो हमारी आंख सबसे अच्छी विधि है, लेकिन और भी अलग-अलग तरीके हैं, जैसे प्लेटिनम कोबाल्ट स्केल (platinum cobalt scale) या हम स्पेक्ट्रोफोटोमीटर (spectrophotometer) का हम उपयोग कर सकते हैं ।
 रंग माप की इकाइयाँ हेज़ेन यूनिट (Hazen unit) या ट्रू कलर यूनिट (True color unit) हैं।
 ये ही इकाइयां हैं, जिससे हम आमतौर पर रंग का वर्णन करते हैं।
 दूसरा पैरामीटर(parameter) स्वाद और गंध है, और यह एक स्व-परिभाषित औरसापेक्ष पैरामीटर (relative parameter) है, क्योंकि किसी को लग सकता है कि पानी में कुछ अलग स्वाद आ रहा है, अन्य व्यक्ति को कुछ गंध महसूस सकती है।
 तो, यह एक ऐसा पैरामीटर (parameter) है जो अलग-अलग व्यक्तियों को अलग-अलग महसूस होगा।
 जहां एक तरफ, खनिज पानी में सिर्फ स्वाद पैदा करते हैं लेकिन गंध नहीं।
 ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) पानी में स्वाद और गंध दोनों पैदा करने की संभावना रखते हैं।
 उदाहरण के लिए, कोई भी पेड़ का क्षय पत्ता पानी में मौजूद होता है तो वह स्वाद और गंध दोनों पैदा करेगा।
 गंध की माप आमतौर पर थ्रेशोल्ड ओडर नंबर (Threshold Odor Number) या TON के रूप में व्यक्त की जाती है।
 तो हम TON की गणना कैसे कर सकते हैं? TON की गणना सूत्र है, {TON = (A+ B) / A} ।
 यहाँ A गंधहीन पानी की मात्रा (mL में) है और B गंध-मुक्त पानी की मात्रा है जो 200 एमएल (ml) मिश्रण का उत्पादन करने के लिए आवश्यक है।
 A आपके द्वारा लिए गए पानी के नमूने की मात्रा है, और B एक गंध-मुक्त पानी की मात्रा है जो 200 एमएल (ml) मिश्रण का उत्पादन करने के लिए आवश्यक है।
 उदाहरण के लिए, आप अपने नमूने का 1 एमएल (ml) लेते हैं, और आप 199 एमएल (ml) गंध-मुक्त स्वच्छ पानी मिला रहे हैं, तो A 1 एमएल (ml) हैं, और B 199 एमएल (ml) है।
 तो, आपका TON है (A + B) / A।
 तापमान : आप सभी जानते हैं कि तापमान कैसे मापना है।
 तापमान प्राकृतिक पानी में जैविक और रासायनिक अभिक्रिया को नियंत्रित करता है और पानी में विभिन्न गैसों (gases) की घुलनशीलता को प्रभावित करता है और पानी मे मिश्रित ऑक्सीजन भी तापमान पर निर्भर करती है।
 यही कारण है कि आमतौर पर हम तापमान को मापते हैं लेकिन स्वीकार्य सीमा क्या है; यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है।
 कुछ लोग ठंडा पानी पसंद करते हैं, कुछ लोग गर्म पानी पसंद करेंगे।
 तो यह भी एक व्यक्तिपरक पैरामीटर (parameter) है।
 अगला पैमाना है, टर्बीडीटी (turbidity)।
 तो, यह टर्बीडीटी (turbidity) क्या है? यह प्रकाश का पानी में सस्पेंडेड सॉलिड (suspended solids) द्वारा अवशोषित (अब्सॉर्ब/absorb) होने या बिखरने (स्केटर/scatter) का माप है।
 यह पानी में मौजूद सस्पेंडेड सॉलिड (suspended solids) और कोलोइडल सोलीड्स (colloidal solids) का एक अप्रत्यक्ष माप है।
 उदाहरण के लिए, आप बहुत अधिक सस्पेंडेड सॉलिड (suspended solids) और कोलोइडल सोलीड्स (colloidal solids) वाले पानी का बीकर (beaker – काँच का ग्लास) लेते हैं, और उसे एक छोर से प्रकाशित करते हैं, फलतः रोशनी बिखर जाएगी ।
 तो, यह पानी में मौजूद सस्पेंडेड सॉलिड (suspended solids) और कोलोइडल सोलीड्स (colloidal solids) का अप्रत्यक्ष माप देगा और कण आकार के साथ पानी का टर्बीडीटी (turbidity) बदलती है।
 उदाहरण के लिए, आप एक कंकड़ लेते हैं, और आप इसे बीकर (beaker) में रखते हैं, और यदि आप टर्बिडिटी (turbidity) को मापते हैं, तो टर्बिडिटी (turbidity) बहुत कम होगी।
 लेकिन कल्पना कीजिए कि अगर आप कंकड़ लेते हैं और उसे बहुत महीन कणों में कुचलते हैं और उसे उसी बीकर (beaker) में डालते हैं जिसका मतलब वही कंकड़ है, इसे बहुत महीन पाउडर (powder) में कुचल दें और डाल दें, तो क्या होगा? बार कणों की संख्या बहुत ज्यादा है।
 तो, आपका स्केटर (scatter) या बिखराव बहुत अधिक होगा, इसलिए, आपको बहुत अधिक टर्बीडीटी (turbidity) मिलेगी।
 इसलिए, जो मैं बताने की कोशिश कर रहा हूं, वह मात्रात्मक या प्रत्यक्ष रूप से सिस्टम में मौजूद कुल सस्पेंडेड सॉलिड (suspended solids) और कोलोइडल सॉलिड (colloidal solids) को नहीं मापेगा, यह अप्रत्यक्ष रूप से गुणात्मक माप को मापता है।
 समान्यतः, टर्बिडिटी (turbidity) के मापन की इकाई एनटीयू (NTU) या फॉर्मेज़िन टर्बिडिटी यूनिट (Formazin Turbidity Unit) है।
 आजकल हम आमतौर पर एनटीयू (NTU) इकाइयों का उपयोग टर्बीडीटी (turbidity) की माप के लिए करते हैं।
 पीएच (pH): मैं समझता हूं कि आप सभी जानते हैं कि पीएच (pH) क्या है।
 यह हाइड्रोजन आयन कॉनसनट्रेसन (hydrogen ion concentration) का प्राकृतिक लघुगणक (natural log) है, और यह तय करता है कि पानी अल्कालाइन (alkaline) है या ऐसिडिक (acidic) है।
 पानी अत्यधिक अल्कालाइन (alkaline) या अत्यधिक ऐसिडिक (acidic) नहीं होना चाहिए।
 यह पीने के उद्देश्य के लिए स्वीकार्य नहीं है।
 पीने के पानी के लिए लगभग 6.5 से 8.5 के बीच पीएच (pH) को प्राथमिकता दी जाती है।
 कनडक्टिविटी (conductivity): किसी भी तरल पदार्थ मे आयन (ions) का माप।
 अधिकतर केवल आयन होते हैं, एटम (atom) नहीं क्योंकि कनडक्टिविटी (conductivity) का मुख्य कारक आयन (ions) होते है न की एटम (atom), अतः यह केवल आयनों को मापेगा।
 पानी में डिजॉल्वड सोलीड्स (dissolved solids) का अप्रत्यक्ष मापन लेकिन अपशिष्ट जल में डिजॉल्वड सोलीड्स (dissolved solids) को मापने के लिए कनडक्टिविटी (conductivity) का उपयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि पानी में अधिकांश सोलिड्स (solids) आयनित रूप में होंगे लेकिन अपशिष्ट जल में सोलीड्स (solids) अधिकांशतः आयन (ions) रूप में नहीं हो सकते।
 जैसे, उदाहरण के लिए, आप ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) लेते हैं, उनमें से कई आयन रूप में मौजूद नहीं हो सकते हैं।
 इसलिए, यदि आप अपशिष्ट जल में डिजॉल्वड सोलीड्स (dissolved solids) को मापने के लिए कनडक्टिविटी (conductivity) का उपयोग करते हैं, तो समम्भव है की यह सही माप नहीं दे ।
 एक प्रयोगसिद्ध सूत्र है जो हम आमतौर पर टीडीएस (TDS) का पता लगाने के लिए उपयोग करते हैं।
 कनडक्टिविटी (conductivity) = 2.5 x 10-5 (TDS) के बराबर है।
 यह टीडीएस (TDS) मिलीग्राम प्रति लीटर(mg/litre) में होगा।
 अगला पैरामीटर (parameters) सोलीड्स (solids) है।
 जब हम सोलीड्स (solids) के बारे में बात करते हैं, तो हम उन्हें अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं सेटलएबल सोलीड्स (settleable solids), डिजॉल्वड सोलीड्स (dissolved solids) और सस्पेंडेड सॉलिड (suspended solids) और कोलोइडल सोलीड्स (colloidal solids) वोलाटाइल सोलीड्स (volatile solids) एवं फ़िक्स्ड सोलीड्स (fixed solids)।
 जब हम इन सोलीड्स (solids) एवं जल आपूर्ति प्रणाली के बारे में बात करते हैं तो हम इन सभी सोलीड्स (solids) के बारे में चर्चा न करके, हम केवल टोटल डिजॉल्वड सोलीड्स (total dissolved solids-TDS) और टोटल सोलीड्स (total solids) पर ध्यान देते हैं।
 लेकिन जब अपशिष्ट पानी की शुद्धि की बात आती है, तो हमें इन सभी वर्गीकरणों को दिमाग मे रखना होगा क्योंकि शुद्धि प्रणाली का डिज़ाइन टोटल सोलीड्स (total solids) की प्रकृति पर निर्भर करेगा।
 तो, यह सेटलएबल सोलीड्स (settleable solids) क्या है? जैसा कि नाम से संकेत मिलता है कि आप पानी को स्थिर छोड़ दे और जो कुछ भी बर्तन के तल पे जमा होगा, वह सेटलएबल सोलीड्स (settleable solids) है।
 तो, आमतौर पर, हम इम्हॉफ कोन (Imhoff cone) का प्रयोग करते हैं।
 यह इम्हॉफ कोन (Imhoff cone) है।
 आप देख सकते हैं कि यह कोन (cone) से कैसे माप लिया जाता है।
 पानी को 30 मिनट तक स्थिर रहने दिया जाए ताकि सभी सोलीड्स (solids) नीचे बैठ जाए तो सीधे तौर पर हमें सिस्टम में सेटलएबल सोलीड्स (settleable solids) की मात्रा मिल जाएगी।
 अब, हम अन्य सोलीड्स (solids) के बारे मे बात करेंगे ।
 तो, मैंने आपको पहले भी विभिन्न प्रकार के सोलीड्स (solids) के बारे मे बताया हैं।
 पानी के नमूने में टोटल डिजॉल्वड सोलीड्स (total dissolved solids-TDS) और सस्पेंडेड सॉलिड (suspended solids) होंगे, इसलिए, पानी को एक फिल्टर पेपर (filter paper) के माध्यम से छान लें और इसे सूखा लें।
 वजन में अंतर आपको टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (total suspended solids) देगा।
 यह वोलाटाइल सोलीड्स (volatile solids) एवं फ़िक्स्ड सोलीड्स (fixed solids) का एक संयोजन होगा।
 फिर आपको यह करना है की, फिल्टर पेपर (filter paper) को सॉलिड्स (solids) के साथ मफल फरनेस (muffle furnace) में 500 डिग्री सेंटीग्रेड (degree centigrade) पर 20 से 30 मिनट तक रखें।
 ऐसा करने से सभी वोलाटाइल सोलीड्स (volatile solids) ऑक्सिजन (oxygen) के साथ मिलकर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और पानी (H2O) बनाएँगे, जो की हवा मे उड़ जाएगा और फिर फिल्टर पेपर (filter paper) में केवल इनअर्गनीक सोलीड्स (inorganic solids) शेष होगा।
 इसलिए, यदि आप फ़िल्टर पेपर (filter paper) का वजन लेते हैं, तो आपको टोटल फ़िक्स्ड सस्पेंडेड सॉलिड (total fixed suspended solids) मिलेंगे।
 इसलिए, फ़िल्टर (filter) करने के बाद, यदि आप फ़िल्टर पेपर (filter paper) पे बचा हुआ पदार्थ लेते हैं, पानी को पूरी तरह से वाष्पित करते हैं और सॉलिड (solid) पदार्थ वाले कंटेनर (container) का वजन लेते हैं, तो आपको टोटल डिजॉल्वड सोलीड्स (total dissolved solids-TDS) मिल जाएगा।
 यह भी वोलाटाइल सोलीड्स (volatile solids) एवं फ़िक्स्ड सोलीड्स (fixed solids) का संयोजन है।
 फिर आप कंटेनर (container) को 500 डिग्री सेंटीग्रेड (degree centigrade) पर मफल फरनेस (muffle furnace) में या 500 डिग्री सेंटीग्रेड (degree centigrade) के नीचे क्रूसिबल (crucible) में रखें; आपको टोटल फ़िक्स्ड डिजॉल्वड सोलीड्स (total fixed dissolved solids) मिलेंगे।
 यदि आप टोटल फ़िक्स्ड डिजॉल्वड सोलीड्स (total fixed dissolved solids) और टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (total suspended solids) जोड़ते हैं, तो आपको टोटल फ़िक्स्ड सोलीड्स (total fixed solids) मिलेंगे, और टोटल डिजॉल्वड सोलीड्स (total dissolved solids) और टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (total suspended solids) आपको टोटल सॉलिड (Total solids) मिलेंगे, इत्यादि, ।
ये थे सोलीड्स (solids) की श्रेणियां पता लगाने के अलग-अलग तरीके ।
 और मैं आपको फिर से बता रहा हूं, इस प्रकार का वर्गीकरण आमतौर पर अपशिष्ट जल के लिए किया जाता है, पीने के पानी के लिए नहीं।
 अब जानते है की ये अल्कालिनीटी (alkalinity) और एसिडिटि (acidity), क्या हैं? अल्कालिनीटी (alkalinity) पानी की एसिडिटि (acidity)को निष्क्रिय करने वाली क्षमता है।
 एसिडिटि (acidity) पानी की अल्कालिनीटी (alkalinity) न्यूट्रलाइज़िंग (neutralizing) क्षमता है।
 अल्कालिनीटी (alkalinity) पानी में मौजूद बाइकार्बोनेट (bicarbonate), कार्बोनेट (carbonate) और हाइड्रॉक्साइड (hydroxide), हाइड्रॉक्सिल (hydroxyl) आयनों (ions) की वजह से होती है, वहीं पानी में एसिडिटि (acidity) H +, H2CO3 और HCO3 के कारण होती है, ऐसा ज्यादातर पानी में कार्बोनिक एसिड सिस्टम (carbonic acid system) के कारण होता है।
 क्योंकि आप जानते हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) और पानी आपको H2CO3 देता है और यह H2CO3 HCO3 और H + में और फिर CO3 और H + में अलग हो सकता है।
 यह वो प्रणाली है जो पानी को बफरिंग (buffering) क्षमता देती है।
 हार्डनेस (hardness): परिभाषा के अनुसार, पानी / सोल्यूशंस (solutions) में मेटालिक आयन(metallic ions) की बहुतायत , हार्डनेस (hardness) है।
 उदाहरण, कैल्शियम (calcium), मैग्नीशियम (magnesium), आइरन (iron), मैंगनीज (manganese), स्ट्रोंटियम (strontium), आदि की उपस्थिति।
 पीने के पानी में ज्यादातर समय कैल्शियम (calcium) और मैग्नीशियम (magnesium) की वजह से हार्डनेस (hardness) होती है क्योंकि अन्य आयन बहुत कम संख्या में मौजूद होते हैं।
 अधिकांशतः हार्डनेस (hardness) को मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/litre) कैल्शियम कार्बोनेट (calcium carbonate) के रूप में व्यक्त किया जाता है।
 और जब हम हार्डनेस (hardness) के बारे में बात करते हैं, तो कार्बोनेट हार्डनेस (carbonate hardness) ही वह कठोरता है जो अल्कालिनीटी (alkalinity) के बराबर है, और यह गर्मी के प्रति संवेदनशील है, और गर्म करने के बाद जो शेष हार्डनेस (hardness) है वह गैर-कार्बोनेट हार्डनेस (non-carbonate hardness) है अथवा यह पानी में मौजूद अल्कालिनीटी (alkalinity) से अधिक है।
 अब हम बीओडी (BOD) और सीओडी (COD) की बारे मे चर्चा करते है।
 यह पानी में मौजूद ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) का माप है ।
 बीओडी (BOD), एक विशेष ऊष्मायन अवधि के लिए एक विशेष तापमान पर बायोडिग्रेडेबल ऑर्गेनिक्स (biodegradable organics) के माइक्रोबियल डीग्रेडेशन (microbial degradation) के दौरान आवश्यक ऑक्सीजन (oxygen) की मात्रा है।
 और सीओडी (COD) बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) और नॉन-बायोडिग्रेडेबल (non-biodegradable) ऑर्गेनिक्स (organics) के केमिकल डीग्रेडेशन (chemical degradation) के लिए आवश्यक ऑक्सीजन (oxygen) की मात्रा है।
 ये माप आमतौर पर अपशिष्ट जल के लिए किए जाते हैं।
 पीने का पानी आमतौर पर हम ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि पीने का पानी हम मानते हैं कि ज्यादातर ओर्गानिक कनटेमिनऐशन (organic contamination) से मुक्त है।
 बीओडी (BOD) को आमतौर पर बीओडी5 (BOD5) या बीओडी3 (BOD3) के संदर्भ में व्यक्त किया जाता है।
 पांच दिनों के ऊष्मायन अवधि के लिए बीओडी 5 20 डिग्री सेंटीग्रेड (degree centigrade) पर मापा जाता है।
 तो, प्रतिक्रिया में क्या होता है?, ऑक्सीजन (oxygen) और माईक्रोब (microbes) की उपस्थिती मे ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds), कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide), पानी और अधिक कोशिकाओं और ऊर्जा में परिवर्तित होता हैं।
 और यह पानी के प्रदूषण की स्थिति का एक संकेतक है।
 बीओडी (BOD) परीक्षण के कई तरीके हैं।
 मैं विवरण में नहीं जा रहा हूं, जो भी विशेष सत्र में जा रहे हैं, वे इस पर गौर कर सकते हैं।
 तो, बीओडी (BOD) परीक्षण आमतौर पर, अपशिष्ट जल लेते हैं, इसे पर्याप्त समय तक पतला करते हैं और इसे वांछित तापमान पर एक इनक्यूबेटर (incubator) में रखते हैं, ज्यादातर 20-डिग्री सेंटीग्रेड (degree centigrade), और हम मानते हैं कि बीओडी (BOD) फ़र्स्ट ऑर्डर रिएक्शन (first order reaction) का अनुसरण करता है, इसलिए, आप गणना कर सकते हैं कि सिस्टम में मौजूद ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) क्या है।
 सीओडी (COD), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (chemical oxygen demand) इसलिए की जाती है क्योंकि जैविक प्रक्रिया में लंबा समय लगेगा।
 अतः, हम अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों में बहुत मजबूत ऑक्सीडाईजिंग एजेंट (oxidizing agent) का उपयोग करके ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) को केमिकल डीग्रेडेशन (chemical degradation) कर सकते हैं।
 इस केमिकल रिएक्शन (chemical reaction) में हम पोटेशियम डाइक्रोमेट (potassium dichromate) का उपयोग इलेक्ट्रॉन (electron) स्वीकर्ता के रूप में, उच्च तापमान और अत्यधिक ऐसिडिक(acidic) स्थिति में करते हैं।
 ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds), कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) और पानी मे बदल जाता है और क्रोमियम (chromium) छह; Cr6 +, डाइक्रोमेट (dichromate) में मौजूद क्रोमियम (chromium) 3 में परिवर्तित हो जाएगा; Cr3 +।
 कितना Cr6 + से Cr3 + में परिवर्तित हुआ है पता करके हम यह पता लगा पाएंगे कि इस रिएक्शन (reaction) में कितना ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (organic compounds) का ऑक्सीडेशन (oxidation) हो गया है या नहीं।
 यही वह तरीका है जिससे हम सीओडी (COD) को मापते हैं।
 जब हम पानी के बारे में बात करते हैं, तो पोषक तत्व भी पानी में मौजूद होंगे।
 मैंने पहले ही उल्लेख किया है कि पोषक तत्वों के स्रोत अनुपचारित अपशिष्ट जल है।
 क्योंकि कृषि क्षेत्र हम बहुत सारे उर्वरकों का उपयोग करते हैं, ताकि नाइट्रेट (nitrate), फॉस्फेट (phosphate) आदि शामिल हों, ताकि सिस्टम में पोषक तत्वों का भी योगदान हो।
 तो, आप सोच रहे होंगे कि पोषक तत्व मौजूद हैं तो क्या समस्या है।
 नाइट्रेट (nitrate) और फॉस्फेट (phosphate) जलाशयो के यूट्रोफिकेशन (eutrophication) का कारण बन सकते हैं और इसलिए उन्हें हटा दिया जाना चाहिए।
 यदि सिस्टम में अधिक अमोनिया (ammonia) मौजूद है, तो यह जलाशय से ऑक्सीजन (oxygen) को खीच ले जाएगा, आप देख सकते हैं कि कुछ माईक्रोब (microbes) और ऑक्सीजन(oxygen) की उपस्थिति में अमोनियम आयन (ammonia ion), नाइट्राइट (nitrite) में परिवर्तित हो जाते हैं, फिर नाइट्रेट (nitrate) में।
 फॉस्फेट (phosphate), ओर्गानिक फॉस्फेट (organic phosphate) और पॉलीफॉस्फेट (polyphosphate) के रूप में मौजूद है, लेकिन फॉस्फेट (phosphate) किसी भी ऑक्सीजन (oxygen) की मांग को नहीं बढ़ाएगा।
 वे पोषक होते हैं।
 वे मनुष्य के लिए उपयोगी हैं लेकिन समस्या क्या है? हम पानी में पोषक तत्वों के बारे में क्यों परेशान हैं? फॉस्फेट (phosphate) इस रूप में यह बहुत समस्याकारी नहीं हो सकता है, लेकिन अगर पानी में अधिक नाइट्रेट (nitrate) मौजूद है, तो यह ब्लू बेबी सिंड्रोम (blue baby syndrome) का कारण बन सकता है।
 यह बच्चों में होता है।
 क्या होता है? रक्त की ऑक्सीजन-वहन क्षमता (oxygen carrying capacity) कम हो जाएगी, और शिशुओं की अपर्याप्त ऑक्सीजन (oxygen) की मृत्यु हो जाएगी।
 यही कारण है कि हमारे पास पीने के पानी में नाइट्रेट (nitrate) के लिए एक मानक है, और लगभग 45 मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/L) नाइट्रेट (nitrate) पीने के पानी में स्वीकार्य है।
 फिर जब हम जहरीले रसायनों के बारे में बात करते हैं, तो बड़ी संख्या में जहरीले रसायन होते हैं जो पीने के पानी में पाए जा सकते हैं।
 उन में भारी धातु, पॉली ऐरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (polyaromatic hydrocarbons), पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स (polychlorinated biphenyls), डिटर्जेंट और सर्फेक्टेंट (detergents and surfactants), कीटनाशक शामिल हैं, हम बड़ी संख्या में नाम दे सकते हैं, वोलाटाइल ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (volatile organic compounds), प्राथमिकता प्रदूषक, एंडोक्राइन सिस्टम (endocrine system) खराब करने वाले केमिकल्स (chemicals), फर्मास्यूटिकली एक्टिव कोम्पौंड्स (pharmaceutically active compounds), आर्सेनिक (arsenic), फ्लोराइड(fluoride) जैसे इन ओर्गानिक कोम्पौण्ड्स (inorganic compounds), आदि।
 ये सभी चीजें पानी में मौजूद हो सकती हैं।
 इसलिए, यदि आप पानी की आपूर्ति के लिए एक स्रोत की पहचान कर रहे हैं, तो आपको इन सभी मापदंडों के लिए पानी की जांच करनी होगी।
 अन्यथा, आप दूषित पानी का सिस्टम विकसित करते हैं, और अंत में, आप देख रहे हैं कि पानी पीने के उद्देश्य के लिए उपयुक्त नहीं है।
 अगर जहरीले रसायन और भारी धातुएं पानी में मौजूद हैं तो क्या समस्या है? क्योंकि हम जानते हैं कि इन जहरीले रसायनों में से कई नॉन-बायोडिग्रेडेबल (non-biodegradable) हैं या वे प्रकृति में अत्यधिक जेनोबायोटिक (xenobiotic) हैं।
 और इसी तरह, भारी धातुएं (heavy metals) भी।
 क्या होगा यदि वे पानी में मौजूद हैं, उदाहरण के लिए आप एक नदी लेते हैं, अगर नदी का पानी इन घटक, पीएएच (PAH), पीसीबी(PCB), एंडोक्राइन सिस्टम (endocrine system) खराब करने वाले केमिकल्स (chemicals), फर्मास्यूटिकली एक्टिव कोम्पौंड्स (pharmaceutically active compounds), आदि से दूषित है और आप जानते हैं कि नदी प्रणाली में बहुत अधिक वनस्पतियां और जीव हैं।
 यह प्रदूषक छोटे पौधों पर अवशोषित किए जा रहे हैं, और ये छोटे पौधे छोटी मछलियों द्वारा खाए जाते हैं।
 इसलिए, चूंकि इन यौगिकों (compounds) का क्षरण नहीं हो रहा है या इन आयनों का क्षरण नहीं हो रहा है, इसलिए पौधे में इनकी बढ़ती मात्रा छोटी मछलियों में एकत्रित होती जा रही होगी ।
 और छोटी मछलियों को बड़ी मछलियों द्वारा खाया जाता है।
 तो, क्या होगा? ये सभी प्रदूषक बड़ी मछली में मिल रहे हैं, और खाद्य श्रृंखला में, यह बायो-अकयूमुलाशन (bioaccumulation) होगा, या खाद्य श्रृंखला में बायो-मैगनिफ़ीकेशान (biomagnification) हो रहा होगा।
 और अंत में, क्या होगा, आप देख सकते हैं कि पहले शैवाल (algae), फिर शाकाहारी मछली, फिर मांसाहारी मछली फिर यह मानव के लिए आ रही है।
 जब तक मनुष्य मछली खाते हैं, तब तक इस प्रदूषकों की एक बड़ी मात्रा उनके शरीर में जमा हो जाती है, और यह अत्यधिक समस्याग्रस्त हो सकता है।
 उदाहरण के लिए, आप में से अधिकांश ने मिनमाता (minamata) रोग के बारे में सुना होगा।
 यह मरक्यूरी (mercury) के कारण होता था, और आप जानते हैं कि मरक्यूरी (mercury) एक धातु है, एक भारी धातु (heavy metal) जो अत्यधिक विषाक्त है।
 मिनामाता (minamata) में क्या हुआ, एक कंपनी (company) मरक्यूरी (mercury) का मलबा समुद्र में छोड़ देती है, जब लोग समुद्री जीवों का सेवन करते हैं, जिसमें मरक्यूरी (mercury) होती है, तो क्या हुआ, यह मरक्यूरी (mercury) मानव शरीर में जा मिला, और मानव का तंत्रिका तंत्र प्रभावित हुआ।
 और आप जानते हैं कि सिर्फ एक चुटकी मरक्यूरी (mercury) पूरे पीने के पानी को दूषित करने मे सक्षम है।
 मिनमाता खाड़ी में जहां यह हो रहा था, उस क्षेत्र में बहुत सारे मछुआरे रह रहे थे, और वे बड़ी मात्रा में मछली का सेवन कर रहे थे।
 इसलिए, कंपनी से कचरे के निर्वहन के कारण यह खाड़ी मरक्यूरी (mercury) से दूषित हो गई थी।
 यह मिथाइलमेर्किरी (methyl mercury) में परिवर्तित हो जाता है, और यह मछली में जमा हो जाता है और मछली का सेवन करने वाले लोग, उनके शरीर में बड़ी मात्रा में मरक्यूरी (mercury) मिल गया, और लोग प्रभावित हुए।
 एक के बाद एक, भारी धातु संदूषण के बारे में जागरूकता बहुत फैल गयी ।
 एक और प्रदूषक फ्लोराइड (fluoride) है।
 फ्लोराइड(fluoride) भी पानी में मौजूद एक आयन (ion) है; ज्यादातर यह प्राकृतिक मूल से आ रहा है।
 यदि पानी में फ्लोराइड (fluoride) का स्तर बढ़ता है, तो यह दांत और हड्डी से संबंधित फ्लोरोसिस (fluorosis) और नॉन-स्केलेटन फ्लोरोसिस (non-skeleton fluorosis) का कारक बनता है।
 आप यहां देख सकते हैं कि दांतों का डीकलरेशन (decoloration) या मिनरलआइज़ेशान (mineralization) हो रहा है और 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/L) फ्लोराइड (fluoride) से कम मात्रा मे देख सकते हैं, कोई समस्या नहीं है, लेकिन अगर पानी में फ्लोराइड (fluoride) की एकाग्रता 1.5 से 3 के आसपास है, तो दांतों का फ्लोरोसिस (fluorosis) हो सकता है।
 3.1 से 6 से कम स्केलेटल फ्लोरोसिस (skeletal fluorosis) और 6 से अधिक, अत्यधिक स्केलेटल फ्लोरोसिस (skeletal fluorosis)।
 आप वह देख सकते हैं।
 ये फ्लोराइड (fluoride) प्रभावित लोगों के दांतों के उदाहरण हैं।
 और पीने के पानी में फ्लोराइड (fluoride) के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश 1.5 मिलीग्राम प्रति लीटर (mg/L) तक हैं।
 एक और बात जब हम पानी की गुणवत्ता के मापदंडों के बारे में बात करते हैं तो हमें उत्पादों द्वारा कीटाणुशोधन के बाद निकलने वाले घटकों के बारे में सोचना पड़ता है।
 जब हम पानी का कीटाणुशोधन करते है, हम सिस्टम मे कीटाणुनाशक जोड़ते हैं, तो वे ऑर्गोक्लोरिन कम्पाउण्ड (organochlorine compound) या ऑर्गेनो-हेलो कम्पाउण्ड(organo-halo compound) बना सकते हैं और इनमें से कई कम्पाउण्ड (compound) कैंसर-कारक (carcinogenic) हैं।
 उदाहरण के लिए, ट्राई हेलो मीथेन (trihalo methane), हेलोएसेटिक एसिड (halo acetic acid) और कई ऑर्गेनोक्लोरिन कम्पाउण्ड (organochlorine compound), ये यौगिक प्रकृति में नॉन-बायोडिग्रेडेबल (non-biodegradable), ज़ेनोबायोटिक(xenobiotic) और कैंसर-कारक (carcinogenic) हैं।
 इसलिए, हमें उस बारे में भी सोचना होगा।
 अब, हम बैक्टीरियोलॉजिकल (bacteriological) गुणवत्ता के बारे में बात करेंगे, और मैंने आपको बताया कि यह सबसे महत्वपूर्ण हैं, और इस संदूषण के कारण कई बीमारियां होती हैं, उदाहरण के लिए, मलेरिया, डेंगू, चूहे का बुखार, चिकनगुनिया, उल्टी, हैजा।
 ये सभी बीमारियाँ होती हैं पानी में मौजूद रोगजनक सूक्ष्मजीवों के कारण।
 रोगजनकों में वायरस (virus), बैक्टीरिया (bacteria), फ़नजाई (fungi), अलगे (algae), प्रोटोजोआ (protozoa), हेल्मिन्थ (heliminths) हो सकते हैं और आप आकार भिन्नता देख सकते हैं।
 ये रोगजनक विभिन्न जल जनित रोगों का कारण बनते हैं जैसे हैजा, टाइफाइड (typhoid), डायरिया (diarrhea), जियार्डियासिस (giardiasis) आदि।
 पानी इन रोगजनकों से मुक्त होना चाहिए।
 बैक्टीरियोलॉजिकल (bacteriological) परीक्षा सबसे महत्वपूर्ण जल गुणवत्ता पैरामीटर (parameter) है।
 पानी रोगजनकों से मुक्त होना चाहिए और अधिकांश समय सूक्ष्मजीवों के संबंध में पानी की गुणवत्ता को मोस्ट प्रोबेबल नंबर (most probable number) या एमपीएन (MPN) के संदर्भ में दर्शाया जाता है।
 यहाँ हम एक संकेतक जीव का पता लगा रहे हैं, इस सूचक जीव की कितनी संख्या पानी में मौजूद है, इसके आधार पर हम बता सकते हैं कि पानी सुरक्षित है या नहीं।
 पीने के पानी के लिए, कुल जीव, कोलीफॉर्म (coliform) का उपयोग संकेतक जीव के रूप में किया जाता है, कुल कोलीफॉर्म (total coliform) संख्या 1.8 से कम होनी चाहिए।
 फिर जैसा कि मैं पहले उल्लेख कर रहा था, यदि आप अच्छी गुणवत्ता और पर्याप्त मात्रा में पानी देते हैं तो लोगों के स्वास्थ्य का आश्वासन मिलता है, और यह है कि, हम देख सकते हैं कि लगभग 80% बीमारियों का कोई न कोई रास्ता पानी से संबंधित है।
 इसलिए, हम उनके संचरण के तरीके के आधार पर रोगों को वर्गीकृत कर सकते हैं।
 मुख्य रूप से उन्हें चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है; वॉटर-बोर्न बीमारियाँ (water borne diseases), वॉटर बेस्ड बीमारियाँ (water based diseases), वॉटर रीलेटेड बीमारियाँ (water related diseases), और वॉटर वाश्ड बीमारियाँ (water washed diseases) ।
 वॉटर-बोर्न बीमारियाँ (water borne diseases) रोग क्या हैं? दूषित पानी के सेवन से होने वाले रोग।
 यदि आप दूषित पानी का सेवन करते हैं, तो ये रोग फैल जाते हैं।
 उदाहरण है कॉलरा, पीलिया, डायरिया आदि हैं, इसलिए यदि आप इस बीमारी को नियंत्रित करना चाहते हैं, तो हमें क्या करना चाहिए? हमें इन रोग पैदा करने वाले माईक्रोब (microbes) से मुक्त पानी देना चाहिए।
 यह था पहला वर्गीकरण, वॉटर-बोर्न बीमारियाँ (water borne diseases)।
 दूसरा, वॉटर बेस्ड बीमारियाँ (water based diseases) है, यहां जीव के जीवनचक्र का एक हिस्सा इस बीमारी का कारण है।
 उदाहरण के लिए, गिनी (guinea) कीड़े, किसी भी कृमि रोग, पानी - जीव पानी में अपने जीवन चक्र का एक हिस्सा बिताते हैं।
 तो, अगर आप दूषित पानी के संपर्क में आ रहे हैं, तो इस प्रकार की बीमारी लोगों को हो सकती है।
 अगली है वॉटर रीलेटेड बीमारियाँ (water related diseases)।
 इनसेक्ट वेक्टर (insect vector) पानी में प्रजनन करते हैं, वे इस प्रकार की बीमारी का कारण बनते हैं।
 उदाहरण मलेरिया, चिकनगुनिया, डेंगू इत्यादि हैं, इसलिए बीमारी फैलाने वाले जीव या वेक्टर पानी में रहते हैं।
 और अंतिम वर्ग है वॉटर वाश्ड बीमारी (water washed diseases), जो जल की अनुपलब्धता के कारण होती है।
 उदाहरण, टाइफस (typhus), दाद (ringworm), खाज (scabies) इत्यादि, इन श्रेणियों के अंतर्गत आते हैं।
 ये सभी जल-जन्य बीमारियाँ हैं।
 मैंने यहां वायरस (virus) और प्रोटोजोआ (protozoa) दिखाए हैं।
 और यह वॉटर बेस्ड बीमारियाँ (water based diseases) हैं; आप गिनी (guinea) कृमि देख सकते हैं।
 कीड़े निकल रहे हैं।
 और वॉटर वाश्ड बीमारी, खाज (scabies) और आंखों के रोग और सभी चीजें क्योंकि स्वच्छ परिस्थितियां पूरी नहीं होती हैं, यही कारण है कि इस प्रकार की बीमारियां हो रही हैं।
 इसलिए, मैं यहां रुकूंगा।
 अगली कक्षा में, हम पानी की गुणवत्ता मानकों और उपचार पर थोड़ा अध्यन करेंगे।
 आपका बहुत बहुत धन्यवाद।