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सस्टेनेबिलिटी (sustainability) पर व्याख्यान की श्रृंखला में आपका स्वागत है।
 सस्टेनेबिलिटी (sustainability) की अवधारणा का उपयोग प्लास्टिक (plastic) वस्तुओं के उपयोग और फेंकने के संदर्भ में किया जा सकता है।
 प्लास्टिक (plastic) एक सिंथेटिक (synthetic) या अर्ध-सिंथेटिक (semi-synthetic) आर्गेनिक पॉलीमर (organic polymer) है।
 यह किसी भी आर्गेनिक पॉलीमर (organic polymer) से बनाया जा सकता है, लेकिन अधिकांश औद्योगिक प्लास्टिक (plastic) पेट्रोकेमिकल(petrochemical) से बनाये जाते हैं।
 प्लास्टिक(plastic) दो प्रकार के होते हैं, थर्मोसेट (thermoset) जो एक स्थायी आकार में जम जाते हैं, जबकि थर्माप्लास्टिक (thermoplastic) को कई बार गर्म किया जा सकता है।
 जब हम इन प्लास्टिकों (plastics) को बनाते हैं, तो हम बहुत सारे एडिटिव्स (additives) जैसे कलरेंट (colorant), प्लास्टिसाइज़र (plasticizers), फिलर्स (Fillers), स्टेबलाइज़र (stabilizer) और रीइन्फोर्समेंटस (reinforcements) का भी इस्तेमाल करते हैं।
 किसी भी प्लास्टिक (plastic) के विशिष्ट गुण इन एडिटिव्स (additives) पर निर्भर करते हैं।
 प्लास्टिक (plastic) के उदाहरण, पीईटी (PET) जो पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (polyethylene pterephthalate), एचडीपीई (HDPE)- हाई डेंसिटी पॉलीइथिलीन (high density polyethylene) है, पीवीसी (PVC) जो पॉलीविनाइल क्लोराइड (polyvinyl chloride) है, और पीएस (PS) पॉलीस्टीरेन(polysterene), ये विभिन्न उपलब्ध प्लास्टिकों (plastics) में से हैं।
 लियो बेककलैंड (leo Baekeland) पहला व्यक्ति था जिसने पूरी तरह से सिंथेटिक प्लास्टिक(synthetic plastic) बनाया, और इसे बेकेलाइट (Bakelite) नाम दिया गया।
 यह 1907 में आ गया था।
 उस समय से बहुत काम किया गया है और बहुत सारे प्लास्टिक (plastic) पेश किए गए हैं।
 अब हम हर जगह प्लास्टिक (plastic) पाते हैं, जहाँ तक भारत में प्लास्टिक(plastic) परिदृश्य का संबंध है, भारत में प्रति वर्ष शहरों से 62 मिलियन टन (million ton) कचरे में, 5 मिलियन टन (million ton) प्लास्टिक (plastic) का कचरा है।
 दिल्ली शहर प्रति दिन 689 टन (ton) प्लास्टिक (plastic) का उत्पादन करता है, इसके बाद चेन्नई शहर जो प्रति दिन 429.3 टन (ton) और मुंबई 408 टन प्रति दिन का उत्पादन करता है।
 जहां तक राज्यों का संबंध है, महाराष्ट्र राज्य 4.6 लाख टन (ton), या प्रति वर्ष 0.46 मिलियन टन (million ton) है, गुजरात दूसरे स्थान पर, प्रति वर्ष 2.6 लाख टन (ton) या 0.26 मिलियन टन(million ton) और तमिलनाडु प्रति वर्ष 0.15 मिलियन टन(million ton) का उत्पादन करता है।
 प्लास्टिक(plastic) हर जगह पाया जाता है।
 हम प्लास्टिक (plastic) की वस्तुओं का उपयोग करते हैं, और जहां भी हम एक खाली जमीन पाते हैं हम उन्हें चारों ओर फेंक देते हैं।
 किसी भी खाली पड़ी जमीन में आपको यह प्लास्टिक (plastic) पड़ा हुआ दिखता है।
 फिर यद्यपि आपके पास डंपस्टर (dumpster) हो सकते हैं, जिनकी क्षमता पर्याप्त नहीं है, और कई बार वे बहुत सारे प्लास्टिक (plastic) के साथ डंपस्टरों (dumpsters) को ओवरफ्लो (overflow) कर रहे हैं।
 प्लास्टिक(plastic) में बहुत सारे खाद्य कण भी चिपके होते हैं, इसलिए जानवर वहां जाने और फिर उस भोजन को खाने की कोशिश करते हैं और भोजन के साथ-साथ ये जानवर अपने पेट में प्लास्टिक(plastic) भी ले जाते हैं।
 हमें हिरण जैसे कई जानवर मिलते हैं, यहां तक कि हाथी भी।
 कुछ स्थानों पर कुछ पोस्टमॉर्टम (postmortem) किए हैं और उनके पेट के अंदर बहुत सारे प्लास्टिक(plastic) पाए गए हैं।
 वे इस प्लास्टिक (plastic) को खा लेते हैं और शायद यही उनकी मृत्यु का कारण होता है।
 आप समुद्र तटों पर प्लास्टिक (plastic) पाते हैं, फिर से यह पूर्वी तट पर भारत के दक्षिणी भाग में समुद्र तटों में से एक है, और यह प्लास्टिक (plastic) समुद्र तटों पर पड़ा है।
 और इनमें से कुछ प्लास्टिक(plastic) वास्तव में यह केवल लोगों द्वारा फेंका नहीं गया है, यह वास्तव में समुद्र से तट पर आता है।
 आपके पास दुकानें हैं, वास्तव में, प्लास्टिक(plastic) हर दुकान में सर्वत्र पाया जाता है।
 यह एक धार्मिक स्थान के बाहर की दुकानों में से एक है, लोग यहां उन सामग्रियों को खरीदने के लिए आते हैं जिन्हें वे धार्मिक समारोहों में उपयोग करना चाहते हैं, और फिर वे उस प्लास्टिक(plastic) को ले जाते हैं, धार्मिक स्थान में प्लास्टिक (plastic) कैरी बैग (carry bag ) और वहां उनका उपयोग करना और कई अन्य प्लास्टिक(plastic) आइटम (item) हो सकते हैं।
 जिस प्लास्टिक (plastic) को आप यहां देख सकते हैं, उसमें प्लास्टिक (plastic) की पानी की बोतल मैंग्रोव (mangrove), जो बहुत संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है, में अटक गई है।
 तमिलनाडु राज्य में पिचवाराम मैंग्रोव (pichavaram mangrove) है।
 हमने उस तस्वीर को लिया है, वहां कई नालियों में प्लास्टिक (plastic) पाया जाता है, जो प्लास्टिक (plastic) से चोक (choke) हो रहे हैं।
 यह भारत के एक दक्षिणी हिस्से के कस्बों में से एक की एक तस्वीर है, लेकिन यह हमारे देश में कई कस्बों की प्ररूपी है।
 यह प्लास्टिक (plastic) जो इन नालियों को चोक (choke) कर रहा है, बाढ़ के पानी को बहुत आसानी से बहने नहीं देगा और फिर कई बार बारिश की थोड़ी सी मात्रा भी इस नालियों में प्लास्टिकव(plastic) के कारण स्थानीय बाढ़ का कारण बन सकती है।
 महासागरों में भी प्लास्टिक (plastic) है।
 यह पसिफ़िक (pacific) महासागर में बड़ी मात्रा में पाया जाने वाला प्लास्टिक(plastic) का विशिष्ट या प्रसिद्ध उदाहरण है।
 यह पूर्वी कचरा पैच (patch) या उत्तर पसिफ़िक (pacific) सब-ट्रॉपिकल हाई (sub-tropical high) है।
 यह उत्तरी पसिफ़िक (pacific)महासागर है, और यूनाइटेड स्टेट्स (United States) और फिर जापान है, और बीच में यहां प्लास्टिक(plastic) का एक पैच (patch) है, फिर एक पश्चिमी कचरा पैच (patch) है, और फिर वहां कुछ प्लास्टिक(plastic) भी है।
 कोई भी वहां प्लास्टिक(plastic) का उपयोग नहीं कर रहा है, लेकिन तब प्लास्टिक (plastic) महासागरों में अपना रास्ता खोज लेता है।
 यह कैसे होता है? पहले, इसे फेंक दिया जाता है और फिर छोटे, छोटे नालों से यह नदियों में चला जाता है।
 यह चेन्नई शहर की एक नदी, अड्यार नदी का एक उदाहरण है जहाँ हम नदी में ही बहुत सारे प्लास्टिक (plastic) पाते हैं।
 नालियों से, यह नदियों में, नदियों से यह समुद्र में, और फिर समुद्र से वापस समुद्र तटों पर आता है।
 आप हर जगह प्लास्टिक (plastic) पाते हैं, इस प्लास्टिक (plastic) के साथ कई पर्यावरणीय चिंताएं हैं।
 सबसे पहले, मैन्युफैक्चरिंग (manufacturing) के दौरान एमिशन्स (emissions) होते हैं।
 जमीन पर इस प्लास्टिक(plastic) की डंपिंग (dumping) जो इसे बहुत इन्फर्टाइल (infertile) बनाता है।
 यह प्लास्टिक (plastic) मिट्टी की पोरोसिटी (porosity) को कम कर देता है और फिर सब सरफेस (sub surface) में पानी को आसानी से बहने नहीं देता है और मिट्टी में इनफर्टिलिटी (infertility) होती है।
 कई स्थानों पर, कम विकासशील और फिर विकसित देशों के तहत कई बार वे प्लास्टिक (plastic) को जलाते हैं, वे प्लास्टिक (plastic) को इकट्ठा करते हैं, और जलाते हैं।
 इससे कार्बन- मोनोऑक्साइड(carbon monoxide), डाइऑक्सिन (dioxins),जैसे एमिशन्स (emissions) होते हैं।
 हम इस प्लास्टिक (plastic) को बनाते समय बहुत सारे एडिटिव्स भी मिलाते हैं और ये एडिटिव्स (additives) जहरीले होते हैं, और कई बार ये लीच (leach) भी कर सकते हैं।
 और इस प्लास्टिक(plastic) के लिए गंभीर डिस्पोजल (disposal) समस्याएं हैं, कई बार हमारे पास ऐसे पर्याप्त स्थान नहीं है, जहां हम इस प्लास्टिक(plastic) को वैज्ञानिक तरीके से डिस्पोस (dispose) कर सकते हैं।
 फिर सब स्टैण्डर्ड प्लास्टिक (sub standard plastic) बहुत पतले प्लास्टिक (plastic) हैं, इनके संग्रह और रीसाइक्लिंग (recycling) में समस्या है।
 इसके कारण कुछ प्लास्टिक (plastic) शायद दूसरे कचरे के साथ रह जाते हैं या कभी-कभी यह प्लास्टिक (plastic) बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) कचरे के साथ भी मिल जाता है, जिसे आगे कम्पोस्ट (compost) बनाने के लिए उपयोग करते हैं।
 इसलिए, यह हमारे वेस्ट प्रोसेसिंग फैसिलिटीज (waste processing facilities) में हस्तक्षेप करता है।
 और ये कचरा कुछ स्थानों पर जहां उचित निगरानी मौजूद नहीं है, यह बेकार रीसाइक्लिंग(recycling) प्रक्रियाओं को प्रोत्साहित कर रहा है।
 कई जगहों पर, कई शहरों, देशों, राज्यों में प्लास्टिक (plastic) का उपयोग और फेंकने पर प्रतिबंध लगाने की जरूरत है।
 उदाहरण के लिए, बांग्लादेश, चीन, डेनमार्क, केन्या, रवांडा, और संयुक्त राज्य अमेरिका के कई राज्यों ने पहले ही प्लास्टिक (plastic) का उपयोग और फेंकने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
 दुनिया भर में विकसित देशों और विकासशील देशों दोनों को इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है।
 भारत में 18 से अधिक राज्यों ने प्लास्टिक (plastic) के एक समय के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है और ये प्लास्टिक(plastic) की वस्तुओं जैसे प्लेट (plate), कप (cup), चम्मच और अन्य कटलरी (cutlery), कैरीबैग (carry bag), प्लास्टिक से बने बैनर (banner) और जो रेस्तरां (restaurants) में खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग (packaging) में उपयोगी- पानी के पाउच (pouch), ये प्रतिबंधित हैं।
 अब, इससे पहले कि हम उन दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाते हैं जो प्लास्टिक (plastic) से बने होते हैं, हमें वैकल्पिक सामग्री खोजने की आवश्यकता है।
 अन्यथा, प्लास्टिक (plastic) पर प्रतिबंध लागू करना प्रभावी नहीं होगा।
 तो, कई वैकल्पिक सामग्रियां हैं जो उपलब्ध हैं।
 यहाँ इस चित्र में, मैं जूट (jute) से बना एक कैरी बैग (carry bag) दिखा रहा हूँ, जो एक बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) सामग्री है और फिर इन दिनों बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) सामग्री से कटलरी भी बनाई जा रही है।
 चम्मच, कांटे, चाकू वगैरह हैं, हम बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) सामग्री से बना सकते हैं, हमें प्लास्टिक (plastic) के चम्मच और प्लास्टिक (plastic) के चाकू का उपयोग नहीं करना है।
 बहुत सारे लोग अब प्लास्टिक (plastic) कैरी बैग (carry bag) का उपयोग कर रहे हैं, यह एक दुकान है जो भारत में यहाँ प्लास्टिक (plastic) कैरी बैग (carry bag) बेच रही है।
 और फिर एक प्लास्टिक (plastic) कैरी बैग (carry bag) जो भारत में धार्मिक स्थलों पर मंदिरों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
 इसलिए, कई वैकल्पिक सामग्री जैसे हम कागज से सामग्री बना सकते हैं, पत्ती उत्पाद जैसे केले के पत्ते और कई अन्य पेड़ों की पत्तियों का उपयोग प्लेट, कप, वगैरह बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
 हमारे पास बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) बैग (bag) हैं, जो स्टार्च (starch) से बने हैं, एक प्लास्टिक कैरी बैग (plastic carry bag) का उपयोग करने के बजाय सामग्री ले जाने के लिए कपड़े के बैग (bag) और जूट बैग (jute bag) का उपयोग कर सकते हैं।
 जहां खाद्य कटलरी (cutlery) बन रही है, खाद्य कटलरी (cutlery) चम्मच का उपयोग कर सकते हैं और फिर आप चम्मच को भी खा सकते हैं।
 इस खाद्य कटलरी (cutlery) को आटा, नारियल के गोले, कोरा घास वगैरह से बनाया जा सकता है।
 फिर हम भारत के उत्तरी हिस्से के कई हिस्सों में मिट्टी के बरतन का उपयोग कर सकते हैं, वास्तव में, मिट्टी के कप का उपयोग चाय और कॉफी (coffee) के लिए किया जाता है।
 और ग्लास, स्टेनलेस स्टील (stainless steel) जैसी अन्य आइटम (item) या सामग्री हमेशा उत्पाद बनाने के लिए होती है।
 और बांस का उपयोग कई उत्पादों को बनाने के लिए भी किया जा सकता है जो अभी प्लास्टिक (plastic) का उपयोग करके बनाए गए हैं।
 बेशक, जब हम विकल्पों का परिचय देते हैं, तो हमें यह देखना होगा कि क्या फायदा है या क्या नुकसान है।
 हम पेपर उत्पादों को प्लास्टिक बैग (plastic bag) की तरह उपयोग कर सकते हैं, वे प्लास्टिक बैग (plastic bag), प्लास्टिक (plastic) प्लेट और प्लास्टिक(plastic) के कप के प्रतिस्थापन के लिए उपयुक्त हैं।
 और उनका उपयोग छोटे विक्रेताओं द्वारा बेचने के लिए किया जा सकता है, क्योंकि वे बहुत महंगे नहीं हैं।
 और यह भी, उपभोक्ताओं को घर से सामान ले जाने के दौरान, उन्हें हल्का और सूखा सामान ले जाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
 लाभप्रद यह है कि वे रिसाईक्लेबल (recyclable) हैं, वे खाद में बदले जा सकते हैं, वे आसानी से बनाए जाते हैं, आसानी से ले जाते हैं, आसानी से उपलब्ध हैं, और लागत बहुत ज्यादा नहीं है।
 लेकिन निश्चित रूप से, यदि आपको कई उत्पादों को कागज से बनाना पड़ता है, तो बहुत सारे पेड़ों को काट दिया जाएगा।
 और रीसाइक्लिंग (recycling) की प्रक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा की खपत होती है और पेपर बैग (paper bag) में इतनी ताकत नहीं होती है, और वे तरल पदार्थ नहीं ले जा सकते हैं।
 इसी तरह, पत्ती उत्पादों का उपयोग उन वस्तुओं को बनाने के लिए किया जा सकता है जो उपभोक्ताओं के छोर से प्लास्टिक (plastic) की प्लेट, प्लास्टिक (plastic) के कप, प्लास्टिक(plastic) के बैग के लिए प्रतिस्तापन हैं।
 और फिर, उनका उपयोग छोटे विक्रेताओं और उपभोक्ताओं द्वारा घर से सामान ले जाने के दौरान किया जा सकता है।
 वे रिसाइकिलेबल (recyclable), कम्पोस्टेबल (compostable) भी होते हैं, उन्हें आसानी से बनाया जाता है, आसानी से ले जाया, आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
 यह सही है, वे कभी-कभी महंगे भी होते हैं और वे गर्म वस्तुएं और तरल पदार्थ भी नहीं ले जा सकते हैं।
 तो, इस तरह से जब आप प्लास्टिक (plastic) से बने सामानों के लिए वैकल्पिक सामग्री पेश करते हैं, तो हमें फायदे और नुकसान मापना होगा।
 लागत मुख्य कारकों में से एक है, कहाँ उनका उपयोग कर सकते हैं वह एक और महत्वपूर्ण कारक है।
 यहां हमने एक और वस्तु, मिट्टी के उत्पाद दिए हैं, उनका उपयोग प्लास्टिक (plastic) प्लेट और प्लास्टिक (plastic) के कप के प्रतिस्थापन के रूप में किया जा सकता है।
 लेकिन वे अपेक्षाकृत महंगे हैं, वे रिसाईक्लेबल (recyclable), रियूजेबल (reusable) और कम्पोस्टबल (compostable) हैं, लेकिन वे अपेक्षाकृत महंगे हैं, चाय कप की कीमत लगभग 3 रुपये प्रति पीस है।
 हम बांस के उत्पादों का भी उपयोग कर सकते हैं, फिर से वे रिसाईक्लेबल (recyclable), रियूजेबल (reusable) और कम्पोस्टबल (compostable) योग्य हैं, लेकिन वे भी अपेक्षाकृत महंगे हैं।
 एक बांस की प्लेट की कीमत आकार के आधार पर 4 से 8 रुपये प्रति प्लेट होती है और एक मध्यम आकार की टोकरी के लिए बांस की टोकरी की कीमत लगभग 50 रुपये होती है।
 इसलिए, जब आप इन नई सामग्रियों को प्लास्टिक (plastic) के विकल्प के रूप में पेश करते हैं, तो हमें इसकी लागत के बारे में सोचना होगा, क्या छोटे विक्रेता उन्हें स्टॉक (stock) करने में सक्षम होंगे और फिर उन्हें बेच देंगे, क्या उपयोगकर्ता उस अतिरिक्त लागत का भुगतान करने के लिए तैयार हैं, अगर हम प्लास्टिक (plastic) पर प्रतिबंध लगाते हैं और फिर इस आइटम (item ) को पेश करते हैं।
 ये मुद्दे हैं जिन पर प्लास्टिकवस्तुओं पर प्रतिबंध को लागू करते समय गंभीरता से सोचना होगा।
 उन सरकारों के लिए कई चिंताएं हैं जो प्लास्टिक (plastic) पर इस प्रतिबंध को लागू करने की योजना बना रही हैं।
 पहली बात यह है कि आप, लोगों को अपनी जीवन शैली बदलने के लिए कह रहे हैं, यह एक बहुत बड़ा मुद्दा है।
 आप लोगों को अपने साथ कैसे ले जाते हैं? अगर लोग बदलने को तैयार नहीं हैं, तो प्रतिबंध को लागू करना बहुत मुश्किल है।
 विकल्प महंगे हैं, निश्चित रूप से प्लास्टिक (plastic) की वस्तुओं की तुलना में महंगा हैं, और इसलिए विक्रेताओं विशेष रूप से छोटे विक्रेताओं या सीमांत विक्रेताओं को अपना व्यापार खोने का डर है।
 अगर प्रतिबंध को समान रूप से लागू नहीं किया जाता है, तो उन्हें डर है कि अन्य दुकानदार प्लास्टिक (plastic) की थैलियां या प्लास्टिक (plastic) के सामान के सारे व्यापार कर रहे होंगे।
 एक और महत्वपूर्ण मुद्दा प्रत्येक इलाके का है जहां हम स्थानीय रूप से उपलब्ध सामग्री के आधार पर विनियोगात्मक विकल्पों का पता लगाने में सक्षम नहीं हो सकते हैं।
 तब कई हितधारकों के बीच समन्वय हो जब आप प्लास्टिक पर इस प्रतिबंध को लागू करने का प्रयास करते हैं।
 विशेष रूप से कुछ देशों में, यह एक मुद्दा हो सकता है, कई लोगों, सरकार या निगरानी एजेंसियों (agencies) या निर्माताओं, विक्रेताओं, उपयोगकर्ताओं, इन सभी विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय जैसी समस्या हो सकती है।
 वैकल्पिक उत्पादों के निर्माता, जो बाजार में नए हैं, वे ब्याज के मामले में किसी प्रकार के समर्थन, वित्तीय समर्थन जैसे कम ब्याज दर, ऋण, या सब्सिडी (subsidy) वगैरह की अपेक्षा करते हैं।
 उन्हें सरकार से किसी तरह के समर्थन की उम्मीद है।
 जब आप इस प्रतिबंध को लागू करते हैं, तो शुरू में निर्माताओं और विक्रेताओं का विरोध होगा, और निर्माताओं की लॉबी (lobby) होगी, जो इस प्रतिबंध में देरी के लिए या प्रतिबंध के नियमों को कमजोर करने के लिए सरकार के साथ लॉबी (lobby) करेगा, फिर प्रतिबंध को लागू करना होगा और इमप्लिमेंटेशन (implementation) के लिए जनशक्ति की उपलब्धता के कारण सरकार स्वयं कठिन हो सकती है।
 उनके पास पर्याप्त लोग नहीं होते हैं, जो इस प्रतिबंध को लागू करते हैं,निगरानी कर सकते हैं, उन लोगों को खोजने के संदर्भ में जो प्रतिबंध का उल्लंघन कर रहे हैं।
 तब सरकार को इमप्लिमेंटेशन (implementation) के लिए प्राधिकरण(authority) के प्रतिनिधिमंडल के बारे में सावधानी से सोचना है।
 हमें नए निर्माताओं का निर्माण करना होगा क्योंकि उत्पादकता के मौजूदा स्तर उस मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं जो वैकल्पिक सामग्री के लिए एक बार प्रतिबंध लागू होने के बाद होगा।
 सबसे बड़ी बाधा उन लोगों की मानसिकता को बदलना होगा जिन्हें इन प्लास्टिक (plastic) वस्तुओं का उपयोग करने की आदत है।
 किसी को एक प्रभावी सूचना अभियान, शिक्षा और संचार कार्यक्रम या ईसी (EC) कार्यक्रमों को डिजाइन (Design ) करना होगा, उन्हें नवीन बनाना होगा, और उन्हें प्रभावी बनाना होगा।
 कई बार,यह पर्याप्त नहीं है यदि आप सभी जगह बोर्ड (board ) लगाते हैं।
 मैं यह नहीं कह रहा हूँ यह आवश्यक नहीं है यह निश्चित रूप से आवश्यक है, लेकिन हमें इस तरह के कुछ और उपाय करने की आवश्यकता है जैसे कि बोर्ड (board ) एक संकेत देता है जो कहता है कि प्लास्टिक से बचें।
 आपको साइनबोर्ड (signboard) में स्थानीय भाषा में संकेत बनाने होंगे, कि सभी लोग समझेंगे कि क्या कहा जा रहा है।
 ये चीजें बहुत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन आपको लोगों को शिक्षित करने के लिए कुछ अभियान चलाने की आवश्यकता है जैसे कि शायद कोई नुक्कड़ नाटक करने के बारे में सोच सकता है।
 नुक्कड़ नाटक बहुत प्रभावी हैं, आप एक नुक्कड़ नाटक के बारे में सोच सकते हैं और जहाँ आप लोगों को प्लास्टि के दुष्प्रभावो और उन्हें वैकल्पिक सामग्रियों में क्यों बदलना चाहिए के बारे में शिक्षित करते हैं।
 और इसके साथ, मैं इस व्याख्यान को समाप्त करना चाहूंगा।
 मैंने अपने सहकर्मियों से इस प्रस्तुति को बनाने के लिए बहुत मदद ली है, प्रोफेसर लिगी फिलिप (Prof. Ligy Philip) और मानविकी विभाग के प्रोफेसर वीआर मुरलीधरन (Prof. V R Muraleedharan) आईआईटी मद्रास (IIT Madras) में सिविल इंजीनियरिंग (Civil Engineering) विभाग से हैं।
 धन्यवाद।